Thursday, April 18, 2024
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पवन पुत्र: आज मंगल,क्या करें क्या न करें, सफ़ल होंगे सब काम…

सावन में माता मंगला-गौरी और भगवान बजरंगबली की पूजा अर्चना भी की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान हनुमान को भगवान शिव का ही रूद्र अवतार माना जाता है। भगवान हनुमान कलयुग में जागृत देव माने जाते हैं। आइये जानते हैं सावन में हनुमान पूजा के लाभ और महत्व।

जय श्री राम 

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हनुमान जी की पूजा का महत्व

हनुमान जी की पूजा सभी प्रकार के संकटों से बचाती है। हनुमान जी की पूजा बहुत ही प्रभावशाली मानी गई हैै। मान्यता है कि हनुमान जी अपने भक्तों को कभी कष्ट में नहीं रहने देते हैं। माना गया है हनुमान जी अमर हैं। उन्हें वरदान प्राप्त है। मंगलवार और शनिवार का दिन हनुमान जी के लिए श्रेष्ठ माना गया है।

जय श्री राम 

मंगलवार को सुबह और शाम करनी चाहिए पूजा

मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा सुबह और शाम दोनों समय करनी चाहिए। हनुमान जी की पूजा में नियम और अनुशासन का पालन करना चाहिए। हनुमान जी नियमों को मानने वाले हैं। हनुमान जी की पूजा स्नान करने के बाद ही करनी चाहिए। हनुमान जी को स्वच्छता बहुत प्रिय हैै। इसलिए हनुमान जी के व्रत और पूजा में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।

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जय श्री राम 

मंगलवार को इन चीजों से दूर रहें

मंगलवार के दिन कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। मंगलवार के दिन नशा नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही गलत आदतों और कार्यों से दूर रहें। क्रोध और अहंकार न करें। विवाद और नकारात्मक विचारों से दूर रहें।

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जय श्री राम 

भगवान श्री राम जी के परम भक्त हनुमान जी से जुड़ी 10 चमत्कारी बातों के बारे में आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे। बजरंग बली को महा शक्तिशाली माना जाता है और इनकी पूजा अर्चना करने मात्र से कई शुभ फलों की प्राप्ति होती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार बजरंग बली की अराधना करने से नकारात्मक शक्तियों से भी तुरंत छुटकारा मिलता है। यदि आप भी अपने जीवन की नकारात्मकता को दूर करना चाहते हैं तो हनुमान जी की अराधना और हनुमान चालीसा का पाठ आपको करना चाहिए। आइए अब जानते हैं हनुमान जी से जुड़ी 10 चमत्कारी बातों के बारे में।

ग्यारहवें रुद्र अवतार बजरंगबली

बजरंगबली भगवान शिव के ग्यारहवें रूद्र अवतार माने जाते हैं। यही वजह है कि उनके अंदर असीमित शक्तियां हैं। भगवान शिव ने भगवान विष्णु के मानव अवतार श्री राम के साथ समय व्यतीत करने और उनकी सहायता करने के लिए अपने एकादश रूद्र के अवतार में हनुमान जी के रूप में अंशावतार लिया। हनुमान जी असीमित शक्तिशाली हैं और अपने भक्तों पर सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं। जो कोई भी भगवान श्री राम का नाम लेता है, हनुमान जी की सहज कृपा उन्हें प्राप्त हो जाती है।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठ ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ।

जो मन जितने तीव्र और पवन जितने वेगवान हैं, जो जितेंद्रिय हैं और जिन्होंने अपनी इंद्रियों को वश में किया हुआ है, जो  बुद्धिमान हैं, विद्या और बुद्धि में श्रेष्ठ हैं, जो पवन देव के पुत्र हैं और वानरों में श्रेष्ठ हैं। श्री राम जी के दूत (श्री बजरंगबली हनुमान जी) की मैं शरण लेता हूं।

हनुमान चालीसा की चौपाई देखिए –

शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जग वंदन।

अर्थात भगवान शंकर के पुत्र केसरी नंदन अत्यंत तेजवान और प्रताप वाले, जिनका समस्त जग वंदन करता है। भगवान शिव के अवतार होने के साथ-साथ हनुमान जी पवन देव के पुत्र भी माने जाते हैं और वानरों के राजा केसरी के पुत्र होने से केसरी नंदन और अंजनी पुत्र अर्थात अंजना माता के पुत्र भी हैं।

सूर्य देव के परम शिष्य बजरंगबली और शनि देव के मित्र भी

हनुमान जी ने विद्या अध्ययन के लिए भगवान सूर्य देव से प्रार्थना की तो भगवान सूर्य ने उनसे कहा कि मैं तो निरंतर ही गतिमान रहता हूं तो तुम मुझसे कैसे विद्या ग्रहण कर पाओगे, तो हनुमान जी ने कहा कि मैं भी आपके साथ सदैव गतिमान रहकर शिक्षा ग्रहण कर लूँगा। इस पर सूर्य देव ने उनकी विनती को स्वीकार कर लिया और उन्हें अपने शिष्य के रूप में विद्या देना प्रारंभ किया। इस प्रकार सूर्य देव ने बजरंगबली को गुरु बनकर अनेक प्रकार की शिक्षायें प्रदान की।

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम् दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम् रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ||

जिनका अतुलित बल है, जो सोने के पर्वत के समान अत्यंत कांतियुक्त शरीर वाले हैं,  जो दैत्य रूपी वन को ध्वंस करने वाले हैं और ज्ञानी जनों में सबसे आगे हैं। जो समस्त गुणों के निधान हैं, वानरों के स्वामी हैं,  भगवान श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त तथा पवन देव के पुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं।

भगवान सूर्य देव के पुत्र हैं शनि देव और इस कारण अपने गुरु के पुत्र शनिदेव से हनुमान जी की मित्रता भी है। यही वजह है कि शनिदेव हनुमान जी के भक्तों को कभी कोई क्षति नहीं पहुँचाते और हनुमान जी भी अपने प्रिय मित्र के भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं। जहां शनि देव कर्म का पाठ पढ़ाते हैं, वहीं हनुमान जी भक्ति का मार्ग दिखाते हैं। कहा जाता है कि एक बार युद्ध में शनि देव को चोट आई जिसकी वजह से उन्हें काफी पीड़ा हो रही थी। उस पीड़ा से बचाने के लिए हनुमान जी ने उन्हें सरसों का तेल लगाया था। तभी से शनिदेव ने हनुमान जी को अपना मित्र विशेष रूप से माना और उनके भक्तों को कभी भी हानि ना पहुंचाने का वचन दिया था और कहा कि  जो कोई भक्त शनि देव को सरसों का तेल चढ़ाएगा, शनिदेव उसपर सदैव कृपा करेंगे।

चारों जुग परताप तुम्हारा है प्रसिद्ध जगत उजियारा।

इस प्रकार हनुमान जी का प्रताप चारों युगों और दसों दिशाओं में फैला हुआ है। ये बजरंगबली की महिमा थी कि  उन्होंने स्वर्ण नगरी लंका को जला दिया था लेकिन उनके मित्र शनिदेव से वो सोने की लंका काली पड़ गयी थी।

विवाहित होकर भी ब्रह्मचारी हैं बजरंगबली 

बजरंगबली को ब्रह्मचारी भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमानजी विवाहित भी हैं और उनकी पत्नी भी हैं। इस संदर्भ में एक विशेष कथा है जिसके अनुसार जब बजरंगबली सूर्य देव से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो उन्होंने एक के बाद एक अनेक विद्याओं को शीघ्रता के साथ प्राप्त कर लिया लेकिन कुछ विद्या ऐसी थीं, जो केवल विवाहित होने के उपरांत ही सीखी जा सकती थीं। इस कारण से हनुमान जी को असुविधा हुई क्योंकि वे तो ब्रह्मचारी थे, तो उनके गुरु सूर्य देव ने इसका एक उपाय निकाला। सूर्य देव की अत्यंत तेजस्वी पुत्री थीं सुवर्चला।

सूर्य देव के कहने से हनुमान जी ने केवल शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से अपने गुरु सूर्य देव की पुत्री सुवर्चला से विवाह किया। इस विवाह का जिक्र पाराशर संहिता में भी दिया गया है, जिसके अनुसार सूर्य देव ने 9 दिव्य विद्याओं में से 5 विद्याओं का ज्ञान हनुमान जी को दे दिया था, लेकिन 4 विद्याओं के लिए हनुमान जी का विवाहित होना आवश्यक था। सुवर्चला परम तपस्वी और तेजस्वी थीं। सूर्य देव ने हनुमान जी से कहा था कि विवाह के उपरांत भी तुम सदा बाल ब्रह्मचारी ही रहोगे क्योंकि सुवर्चला तपस्या में लीन हो जाएगी और ऐसा ही हुआ। इस प्रकार हनुमान जी ने शेष विद्या भी अर्जित कर ली और फिर बाल ब्रह्मचारी भी बने रहे। भारत के तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले में आज भी हनुमान जी की मूर्ति हैं जिसमें वे अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान हैं और यहां दर्शन करने से वैवाहिक जीवन में सुख की प्राप्ति होती है और समस्त प्रकार के कष्टों का अंत होता है।

अष्ट सिद्धि और नव निधियों के दाता हैं बजरंगबली

सूर्य देव से शिक्षा प्राप्त करके हनुमान जी अष्ट सिद्धि और नव निधियों के स्वामी बन चुके थे। अणिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व और वशित्व ये कुल आठ सिद्धियां हैं। अणिमा सिद्धि अपने शरीर को अणु जितना छोटा कर लेने की क्षमता प्रदान करती है, तो लघिमा शरीर को इतना हल्का कर सकती है कि आप हवा से भी तेज गति से उड़ सकते हैं। गरिमा सिद्धि प्राप्त करने के बाद शरीर का भार असीमित रूप से बढ़ाया जा सकता है और उसे कोई हिला नहीं सकता तथा प्राप्ति सिद्धि से आप किसी भी स्थान पर अपनी इच्छा अनुसार अदृश्य रूप से जहां जाना चाहें, वहां जा सकते हैं। प्राकाम्य सिद्धि आपको किसी के भी मन की बात को बहुत सरलता से समझा सकती है और महिमा सिद्धि की सहायता से आप जब चाहें, अपने शरीर को असीमित रूप से विशाल बना सकते हैं और किसी भी सीमा तक उसका विस्तार कर सकते हैं। ईशित्व सिद्धि ईश्वर का रूप प्रदान करती है अर्थात यह भगवान की एक उपाधि है, जिससे व्यक्ति ईश्वर स्वरूप हो जाता है और दुनिया पर आधिपत्य स्थापित कर सकता है, तो वहीं वशित्व सिद्धि के प्राप्त करने के बाद आप किसी को भी अपने वश में करके उसे अपना दास बना सकते हैं अथवा पराजित कर सकते हैं।

किरीट, केयूर, नुपूर, चक्र, रथ, मणि, भार्या , गज, और पद्म आदि नव निधियाँ हैं। कुबेर के पास भी नव निधियां थी, लेकिन वे इन निधियों को किसी को देने में असमर्थ थे, लेकिन माता सीता के आशीर्वाद से हनुमान जी ये सभी किसी को भी प्रदान कर सकते हैं। माता सीता ने भी उन्हें अष्ट सिद्धि और नव निधियां मानव मात्र के कल्याण हेतु प्रदान करने का आशीर्वाद दिया था। इस सन्दर्भ में देखिये यह चौपाई:

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता।

दिव्यास्त्र और ब्रह्मास्त्र से भी अजेय हैं बजरंगबली

हनुमान जी इतने शक्तिशाली हैं कि किसी प्रकार का अस्त्र शस्त्र उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। एक बार जब हनुमान जी बालपन में अपनी लीला रचा रहे थे तो उन्होंने उगते हुए सूर्य को फल समझा और उसे खाने के लिए पवन वेग से उड़ते हुए सूर्य के समीप पहुँच गए। जब वे वहाँ पहुंचे ठीक उसी समय राहु सूर्य देव को ग्रसित करने आ रहा था, लेकिन हनुमान जी से डरकर वह भाग गया और इंद्र देव से बजरंगबली जी की शिकायत की। तब इंद्र देव ने हनुमानजी को रोका लेकिन वे बालक थे और नटखट भी इसलिए नहीं माने तो देवराज इंद्र ने उनकी ठोढ़ी पर अपने वज्र का प्रहार किया, जिससे वह अचेत होकर धरती पर गिर पड़े। चूंकि वे वायु देव के पुत्र थे, इसलिए पवन देव ने समस्त संसार की प्राणवायु को रोक लिया और सभी त्राहिमाम करते हुए ब्रह्म देव के पास पहुंचे। उनकी बात सुन कर ब्रह्म देव ने हनुमान जी को पूर्णतः स्वस्थ कर दिया और सभी देवी देवताओं ने उन्हें अपने दिव्य अस्त्र और शस्त्र भेंट किये और अपनी दिव्य शक्तियां भी प्रदान कीं। इसके पश्चात् ब्रह्म देव ने उन्हें वरदान दिया कि कभी भी कोई ब्रह्मास्त्र भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। हनु का अर्थ होता है ठोढ़ी, इसलिए इसी दिन से उन्हें हनुमान कहा जाने लगा।

जब हनुमान जी लंका पहुंचे तो मेघनाद ने उन पर परम शक्ति अर्थात ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। उस समय यदि हनुमान जी चाहते तो उस अस्त्र से प्रभाव से बच सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। पढ़िए सुन्दर काण्ड की यह चौपाई:

ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार।। 

जब मेघनाद ने हनुमान जी पर परम शक्तिशाली ब्रह्मास्त्र का संधान किया, तब हनुमानजी ने मन में विचार किया कि यदि मैं इस ब्रह्मास्त्र को नहीं स्वीकार करता हूं तो इसकी महिमा मिट जाएगी। इसलिए और उन्हें रावण की सभा में भी जाना था, इसलिए भी उन्होंने उस ब्रह्मास्त्र का प्रहार स्वयं पर लिया। इस प्रकार मेघनाद के ब्रह्मास्त्र को निष्फल भी कर दिया, जिसका प्रयोग वह युद्ध में कर सकता था।

श्री राम से भी युद्ध लड़े थे बजरंगबली

भगवान श्री राम जी के परम प्रिय भक्त कहे जाने वाले बजरंगबली का युद्ध स्वयं अपने प्रभु श्रीराम से भी हुआ था। इसके पीछे एक कहानी है जिसके अनुसार भगवान श्री रामचंद्र जी के गुरु महर्षि विश्वामित्र का अपमान राजा ययाति ने कर दिया था। इस वजह से गुरु विश्वामित्र ने भगवान श्रीराम को राजा ययाति को मृत्युदंड देने का आदेश दिया। भगवान श्रीराम से डरकर राजा ययाति ने हनुमान जी की माता अंजनी जी से अपने प्राणों की याचना की क्योंकि वे जानते थे कि  हनुमान जी ही उनकी रक्षा कर सकते हैं। ऐसे में माता अंजना ने राजा ययाति को वचन दे दिया और हनुमान जी को उनकी रक्षा में तत्पर कर दिया। जब हनुमान जी को यह पता चला कि उन्हें श्री राम से युद्ध करना है, तो वे भी असमंजस में पड़ गए क्योंकि वे अपने आरध्या के विरुद्ध युद्ध नहीं कर सकते थे। इसलिए बल और बुद्धि के निदान हनुमान जी ने शीघ्र ही इसकी युक्ति निकाली। ऐसे में भगवान श्री राम के अस्त्रों का जवाब ना देकर हनुमान जी केवल श्री राम नाम को जपते रहे। भगवान श्रीराम ने भी मजबूरी में अनेक अस्त्र-शस्त्र चलाए, लेकिन सब विफल रहे तब महर्षि विश्वामित्र ने इस स्थिति को देखते हुए श्री राम को उनके धर्म संकट से मुक्ति दी और उन्हें युद्ध रोकने का आदेश दिया। इस प्रकार राजा ययाति का जीवन भी बच गया और हनुमान जी ने भी अपने वचनों को पूरा किया। यहीं से माना जाता है कि हनुमान जी के इस युद्ध से यह शिक्षा मिली कि प्रभु श्री राम से भी बड़ा राम का नाम होता है। इसलिए भगवान राम का स्मरण करने वाले को कभी भी कोई अस्त्र शस्त्र भी नहीं मार सकते।

चिरंजीवियों में से एक हैं बजरंगबली

इस पृथ्वी पर आज भी ऐसे महामानव जीवित हैं, जो अपने वचनों से अथवा कुछ विशेष कार्यों अथवा श्राप की वजह से अभी भी जीवित है और माना जाता है कि वर्तमान कलयुग के अंत तक वे इस पृथ्वी पर जीवित रहेंगे। इन्हे चिरंजीवी कहा जाता है और बजरंगबली भी इन्हीं में से एक हैं:

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:। कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।। 

जो कोई भी व्यक्ति उपरोक्त मंत्र का जाप करता है और इन चिरंजीवियों का स्मरण करता है, उन्हें दीर्घायु प्राप्त होती है। उनके जीवन से समस्याओं का अंत हो जाता है। हनुमान जी भी इन चिरंजीवियों में से एक हैं और त्रेता युग में वे श्री राम के साथ थे, तो द्वापर युग में श्री कृष्ण के साथ अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान थे। उन्होंने ही भीम का घमंड चूर चूर किया था। श्री राम ने ही उनसे इस पृथ्वी पर रहकर धर्मात्माओं की रक्षा और सहायता करने के लिए कहा था।

एक पिता भी हैं बजरंगबली

हम सभी जानते हैं कि हनुमान जी परम तपस्वी हैं। वे महान शक्तिशाली और ब्रह्मचारी हैं लेकिन इसके अतिरिक्त एक पुत्र के पिता भी हैं। इस संदर्भ में भी एक विशेष कहानी है। उस कहानी के अनुसार रावण की आज्ञा से जब हनुमान जी की पूंछ में आग लगाई गई तो उन्होंने अपनी पूँछ की आग से पूरी लंका को जला कर भस्म कर दिया और स्वयं अपनी पूँछ की आग को बुझाने के लिए समुद्र में कूद गए। आग की गर्मी के कारण उन्हें पसीना आ रहा था, जिसकी वजह से उनके पसीने की कुछ बूंदें समुद्र में गिरीं और एक मछली के मुंह में आ गईं, जिसने उन पसीने की बूंदों को भोजन समझकर ग्रहण कर लिया और उसके पेट में जाकर वह बूंद एक शरीर में बदल गई। कुछ समय बाद पाताल के राजा अहिरावण के सेवकों ने उस मछली को पकड़ लिया और जब वे उस मछली का पेट चीर रहे थे तो उसमें से एक जीव निकला, जिसे अहिरावण के पास ले गए।

अहिरावण ने उसे पातालपुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। यही हनुमान जी का पुत्र मकरध्वज कहलाया। जब राम रावण युद्ध में अहिरावण श्री राम और लक्ष्मण जी का हरण कर उन्हें पाताल पुरी ले गया, तो उनकी रक्षा करने के लिए हनुमान जी भी पाताल नगरी पहुंच गए। वहां एक वानर को देखा तो आश्चर्यचकित होकर उन्होंने मकरध्वज से उसका परिचय पूछा और मकरध्वज ने कहा कि मैं हनुमान का पुत्र मकरध्वज हूं और पातालपुरी का रक्षक हूं। तब हनुमानजी क्रोधित हो गए और बोले यह तुम क्या कह रहे हो? मैं तो बाल ब्रह्मचारी हूं! तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो?

यह जानने के बाद की वे स्वयं हनुमान जी हैं, मकरध्वज उनके चरणों में गिर गया और उन्हें अपनी सारी कथा सुनाई। तब हनुमान जी ने स्वीकार किया कि वह उनका ही पुत्र है, लेकिन वह अपने प्रभु श्री राम और लक्ष्मण को लेने आए हैं, इसलिए मकरध्वज उनका रास्ता छोड़ दे, लेकिन मकरध्वज भी अपने कर्तव्य से नहीं हटा। उसने हनुमान जी से युद्ध करना प्रारंभ कर दिया। जब हनुमान जी के बार बार समझाने पर भी वह नहीं उठा तो हनुमान जी ने उसे अपनी पूंछ में बाँधकर पताल में प्रवेश किया और अहिरावण का वध करने के उपरांत श्री राम और लक्ष्मण को लेकर वापस चल दिए तथा राम जी के कहने पर मकरध्वज को बंधन मुक्त कर दिया और उसका राज्याभिषेक कर उसे पाताल का राजा घोषित कर दिया।

सुंदरकांड और बजरंगबली

हनुमान जी को सुंदरकांड सबसे अधिक प्रिय है क्योंकि इसमें उन्हें उनकी खोई हुई शक्ति का परिचय दिया गया है। उन्हें उनकी शक्तियां दिलाई गई हैं और इस सुंदरकांड में ही हनुमान जी ने अपने प्रभु श्री राम और माता सीता को मिलाने के लिए मुख्य कार्य किए हैं। इसका वर्णन सुनकर हनुमान जी अत्यंत ही प्रसन्न हो जाते हैं और इसीलिए यह सुंदरकांड बहुत प्रभावशाली और शक्तिशाली माना जाता है। जब भी आपका कोई कार्य ना बन रहा हो या जीवन में आप अनेक कठिन समस्याओं से दुखी हों तो बजरंगबली की प्रतिमा या तस्वीर के समक्ष सुंदरकांड का पाठ करने से बजरंगबली की कृपा आप को सहज रूप से प्राप्त हो जाती है और वे आपकी रक्षा करते हैं।

कलयुग के जाग्रत देवता हैं बजरंबली 

हनुमान जी को कलयुग का जाग्रत देवता भी कहा जाता है और वर्तमान समय में हनुमान जी शीघ्र अति शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों को जीवन दान देते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। भगवान श्री राम का नाम जपने वाले की सदैव हनुमान जी रक्षा करते हैं। कलयुग के जाग्रत देवता होने के कारण हनुमान जी शीघ्र ही फल प्रदान करने वाले देवता हैं। उनकी पूजा पवित्रता के साथ और श्रद्धा के साथ करनी चाहिए क्योंकि उग्र होने के कारण वे अपवित्रता से नाराज़ भी हो सकते हैं, इसलिए पूरे मन से और सात्विकता तथा पवित्रता के साथ हनुमानजी की उपासना करनी चाहिए।

और शनि देव के मित्र भी

हनुमान जी ने विद्या अध्ययन के लिए भगवान सूर्य देव से प्रार्थना की तो भगवान सूर्य ने उनसे कहा कि मैं तो निरंतर ही गतिमान रहता हूं तो तुम मुझसे कैसे विद्या ग्रहण कर पाओगे, तो हनुमान जी ने कहा कि मैं भी आपके साथ सदैव गतिमान रहकर शिक्षा ग्रहण कर लूँगा। इस पर सूर्य देव ने उनकी विनती को स्वीकार कर लिया और उन्हें अपने शिष्य के रूप में विद्या देना प्रारंभ किया। इस प्रकार सूर्य देव ने बजरंगबली को गुरु बनकर अनेक प्रकार की शिक्षायें प्रदान की।

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम् दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम् रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ||

जिनका अतुलित बल है, जो सोने के पर्वत के समान अत्यंत कांतियुक्त शरीर वाले हैं,  जो दैत्य रूपी वन को ध्वंस करने वाले हैं और ज्ञानी जनों में सबसे आगे हैं। जो समस्त गुणों के निधान हैं, वानरों के स्वामी हैं,  भगवान श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त तथा पवन देव के पुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं।

भगवान सूर्य देव के पुत्र हैं शनि देव और इस कारण अपने गुरु के पुत्र शनिदेव से हनुमान जी की मित्रता भी है। यही वजह है कि शनिदेव हनुमान जी के भक्तों को कभी कोई क्षति नहीं पहुँचाते और हनुमान जी भी अपने प्रिय मित्र के भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं। जहां शनि देव कर्म का पाठ पढ़ाते हैं, वहीं हनुमान जी भक्ति का मार्ग दिखाते हैं। कहा जाता है कि एक बार युद्ध में शनि देव को चोट आई जिसकी वजह से उन्हें काफी पीड़ा हो रही थी। उस पीड़ा से बचाने के लिए हनुमान जी ने उन्हें सरसों का तेल लगाया था। तभी से शनिदेव ने हनुमान जी को अपना मित्र विशेष रूप से माना और उनके भक्तों को कभी भी हानि ना पहुंचाने का वचन दिया था और कहा कि  जो कोई भक्त शनि देव को सरसों का तेल चढ़ाएगा, शनिदेव उसपर सदैव कृपा करेंगे।

चारों जुग परताप तुम्हारा है प्रसिद्ध जगत उजियारा।

इस प्रकार हनुमान जी का प्रताप चारों युगों और दसों दिशाओं में फैला हुआ है। ये बजरंगबली की महिमा थी कि  उन्होंने स्वर्ण नगरी लंका को जला दिया था लेकिन उनके मित्र शनिदेव से वो सोने की लंका काली पड़ गयी थी।

विवाहित होकर भी ब्रह्मचारी हैं बजरंगबली 

बजरंगबली को ब्रह्मचारी भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमानजी विवाहित भी हैं और उनकी पत्नी भी हैं। इस संदर्भ में एक विशेष कथा है जिसके अनुसार जब बजरंगबली सूर्य देव से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो उन्होंने एक के बाद एक अनेक विद्याओं को शीघ्रता के साथ प्राप्त कर लिया लेकिन कुछ विद्या ऐसी थीं, जो केवल विवाहित होने के उपरांत ही सीखी जा सकती थीं। इस कारण से हनुमान जी को असुविधा हुई क्योंकि वे तो ब्रह्मचारी थे, तो उनके गुरु सूर्य देव ने इसका एक उपाय निकाला। सूर्य देव की अत्यंत तेजस्वी पुत्री थीं सुवर्चला।

सूर्य देव के कहने से हनुमान जी ने केवल शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से अपने गुरु सूर्य देव की पुत्री सुवर्चला से विवाह किया। इस विवाह का जिक्र पाराशर संहिता में भी दिया गया है, जिसके अनुसार सूर्य देव ने 9 दिव्य विद्याओं में से 5 विद्याओं का ज्ञान हनुमान जी को दे दिया था, लेकिन 4 विद्याओं के लिए हनुमान जी का विवाहित होना आवश्यक था। सुवर्चला परम तपस्वी और तेजस्वी थीं। सूर्य देव ने हनुमान जी से कहा था कि विवाह के उपरांत भी तुम सदा बाल ब्रह्मचारी ही रहोगे क्योंकि सुवर्चला तपस्या में लीन हो जाएगी और ऐसा ही हुआ। इस प्रकार हनुमान जी ने शेष विद्या भी अर्जित कर ली और फिर बाल ब्रह्मचारी भी बने रहे। भारत के तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले में आज भी हनुमान जी की मूर्ति हैं जिसमें वे अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान हैं और यहां दर्शन करने से वैवाहिक जीवन में सुख की प्राप्ति होती है और समस्त प्रकार के कष्टों का अंत होता है।

अष्ट सिद्धि और नव निधियों के दाता हैं बजरंगबली

सूर्य देव से शिक्षा प्राप्त करके हनुमान जी अष्ट सिद्धि और नव निधियों के स्वामी बन चुके थे। अणिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व और वशित्व ये कुल आठ सिद्धियां हैं। अणिमा सिद्धि अपने शरीर को अणु जितना छोटा कर लेने की क्षमता प्रदान करती है, तो लघिमा शरीर को इतना हल्का कर सकती है कि आप हवा से भी तेज गति से उड़ सकते हैं। गरिमा सिद्धि प्राप्त करने के बाद शरीर का भार असीमित रूप से बढ़ाया जा सकता है और उसे कोई हिला नहीं सकता तथा प्राप्ति सिद्धि से आप किसी भी स्थान पर अपनी इच्छा अनुसार अदृश्य रूप से जहां जाना चाहें, वहां जा सकते हैं। प्राकाम्य सिद्धि आपको किसी के भी मन की बात को बहुत सरलता से समझा सकती है और महिमा सिद्धि की सहायता से आप जब चाहें, अपने शरीर को असीमित रूप से विशाल बना सकते हैं और किसी भी सीमा तक उसका विस्तार कर सकते हैं। ईशित्व सिद्धि ईश्वर का रूप प्रदान करती है अर्थात यह भगवान की एक उपाधि है, जिससे व्यक्ति ईश्वर स्वरूप हो जाता है और दुनिया पर आधिपत्य स्थापित कर सकता है, तो वहीं वशित्व सिद्धि के प्राप्त करने के बाद आप किसी को भी अपने वश में करके उसे अपना दास बना सकते हैं अथवा पराजित कर सकते हैं।

किरीट, केयूर, नुपूर, चक्र, रथ, मणि, भार्या , गज, और पद्म आदि नव निधियाँ हैं। कुबेर के पास भी नव निधियां थी, लेकिन वे इन निधियों को किसी को देने में असमर्थ थे, लेकिन माता सीता के आशीर्वाद से हनुमान जी ये सभी किसी को भी प्रदान कर सकते हैं। माता सीता ने भी उन्हें अष्ट सिद्धि और नव निधियां मानव मात्र के कल्याण हेतु प्रदान करने का आशीर्वाद दिया था। इस सन्दर्भ में देखिये यह चौपाई:

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता।

दिव्यास्त्र और ब्रह्मास्त्र से भी अजेय हैं बजरंगबली

हनुमान जी इतने शक्तिशाली हैं कि किसी प्रकार का अस्त्र शस्त्र उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। एक बार जब हनुमान जी बालपन में अपनी लीला रचा रहे थे तो उन्होंने उगते हुए सूर्य को फल समझा और उसे खाने के लिए पवन वेग से उड़ते हुए सूर्य के समीप पहुँच गए। जब वे वहाँ पहुंचे ठीक उसी समय राहु सूर्य देव को ग्रसित करने आ रहा था, लेकिन हनुमान जी से डरकर वह भाग गया और इंद्र देव से बजरंगबली जी की शिकायत की। तब इंद्र देव ने हनुमानजी को रोका लेकिन वे बालक थे और नटखट भी इसलिए नहीं माने तो देवराज इंद्र ने उनकी ठोढ़ी पर अपने वज्र का प्रहार किया, जिससे वह अचेत होकर धरती पर गिर पड़े। चूंकि वे वायु देव के पुत्र थे, इसलिए पवन देव ने समस्त संसार की प्राणवायु को रोक लिया और सभी त्राहिमाम करते हुए ब्रह्म देव के पास पहुंचे। उनकी बात सुन कर ब्रह्म देव ने हनुमान जी को पूर्णतः स्वस्थ कर दिया और सभी देवी देवताओं ने उन्हें अपने दिव्य अस्त्र और शस्त्र भेंट किये और अपनी दिव्य शक्तियां भी प्रदान कीं। इसके पश्चात् ब्रह्म देव ने उन्हें वरदान दिया कि कभी भी कोई ब्रह्मास्त्र भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। हनु का अर्थ होता है ठोढ़ी, इसलिए इसी दिन से उन्हें हनुमान कहा जाने लगा।

जब हनुमान जी लंका पहुंचे तो मेघनाद ने उन पर परम शक्ति अर्थात ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। उस समय यदि हनुमान जी चाहते तो उस अस्त्र से प्रभाव से बच सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। पढ़िए सुन्दर काण्ड की यह चौपाई:

ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार।। 

जब मेघनाद ने हनुमान जी पर परम शक्तिशाली ब्रह्मास्त्र का संधान किया, तब हनुमानजी ने मन में विचार किया कि यदि मैं इस ब्रह्मास्त्र को नहीं स्वीकार करता हूं तो इसकी महिमा मिट जाएगी। इसलिए और उन्हें रावण की सभा में भी जाना था, इसलिए भी उन्होंने उस ब्रह्मास्त्र का प्रहार स्वयं पर लिया। इस प्रकार मेघनाद के ब्रह्मास्त्र को निष्फल भी कर दिया, जिसका प्रयोग वह युद्ध में कर सकता था।

श्री राम से भी युद्ध लड़े थे बजरंगबली

भगवान श्री राम जी के परम प्रिय भक्त कहे जाने वाले बजरंगबली का युद्ध स्वयं अपने प्रभु श्रीराम से भी हुआ था। इसके पीछे एक कहानी है जिसके अनुसार भगवान श्री रामचंद्र जी के गुरु महर्षि विश्वामित्र का अपमान राजा ययाति ने कर दिया था। इस वजह से गुरु विश्वामित्र ने भगवान श्रीराम को राजा ययाति को मृत्युदंड देने का आदेश दिया। भगवान श्रीराम से डरकर राजा ययाति ने हनुमान जी की माता अंजनी जी से अपने प्राणों की याचना की क्योंकि वे जानते थे कि  हनुमान जी ही उनकी रक्षा कर सकते हैं। ऐसे में माता अंजना ने राजा ययाति को वचन दे दिया और हनुमान जी को उनकी रक्षा में तत्पर कर दिया। जब हनुमान जी को यह पता चला कि उन्हें श्री राम से युद्ध करना है, तो वे भी असमंजस में पड़ गए क्योंकि वे अपने आरध्या के विरुद्ध युद्ध नहीं कर सकते थे। इसलिए बल और बुद्धि के निदान हनुमान जी ने शीघ्र ही इसकी युक्ति निकाली। ऐसे में भगवान श्री राम के अस्त्रों का जवाब ना देकर हनुमान जी केवल श्री राम नाम को जपते रहे। भगवान श्रीराम ने भी मजबूरी में अनेक अस्त्र-शस्त्र चलाए, लेकिन सब विफल रहे तब महर्षि विश्वामित्र ने इस स्थिति को देखते हुए श्री राम को उनके धर्म संकट से मुक्ति दी और उन्हें युद्ध रोकने का आदेश दिया। इस प्रकार राजा ययाति का जीवन भी बच गया और हनुमान जी ने भी अपने वचनों को पूरा किया। यहीं से माना जाता है कि हनुमान जी के इस युद्ध से यह शिक्षा मिली कि प्रभु श्री राम से भी बड़ा राम का नाम होता है। इसलिए भगवान राम का स्मरण करने वाले को कभी भी कोई अस्त्र शस्त्र भी नहीं मार सकते।

चिरंजीवियों में से एक हैं बजरंगबली

इस पृथ्वी पर आज भी ऐसे महामानव जीवित हैं, जो अपने वचनों से अथवा कुछ विशेष कार्यों अथवा श्राप की वजह से अभी भी जीवित है और माना जाता है कि वर्तमान कलयुग के अंत तक वे इस पृथ्वी पर जीवित रहेंगे। इन्हे चिरंजीवी कहा जाता है और बजरंगबली भी इन्हीं में से एक हैं:

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:। कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।। 

जो कोई भी व्यक्ति उपरोक्त मंत्र का जाप करता है और इन चिरंजीवियों का स्मरण करता है, उन्हें दीर्घायु प्राप्त होती है। उनके जीवन से समस्याओं का अंत हो जाता है। हनुमान जी भी इन चिरंजीवियों में से एक हैं और त्रेता युग में वे श्री राम के साथ थे, तो द्वापर युग में श्री कृष्ण के साथ अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान थे। उन्होंने ही भीम का घमंड चूर चूर किया था। श्री राम ने ही उनसे इस पृथ्वी पर रहकर धर्मात्माओं की रक्षा और सहायता करने के लिए कहा था।

एक पिता भी हैं बजरंगबली

हम सभी जानते हैं कि हनुमान जी परम तपस्वी हैं। वे महान शक्तिशाली और ब्रह्मचारी हैं लेकिन इसके अतिरिक्त एक पुत्र के पिता भी हैं। इस संदर्भ में भी एक विशेष कहानी है। उस कहानी के अनुसार रावण की आज्ञा से जब हनुमान जी की पूंछ में आग लगाई गई तो उन्होंने अपनी पूँछ की आग से पूरी लंका को जला कर भस्म कर दिया और स्वयं अपनी पूँछ की आग को बुझाने के लिए समुद्र में कूद गए। आग की गर्मी के कारण उन्हें पसीना आ रहा था, जिसकी वजह से उनके पसीने की कुछ बूंदें समुद्र में गिरीं और एक मछली के मुंह में आ गईं, जिसने उन पसीने की बूंदों को भोजन समझकर ग्रहण कर लिया और उसके पेट में जाकर वह बूंद एक शरीर में बदल गई। कुछ समय बाद पाताल के राजा अहिरावण के सेवकों ने उस मछली को पकड़ लिया और जब वे उस मछली का पेट चीर रहे थे तो उसमें से एक जीव निकला, जिसे अहिरावण के पास ले गए।

अहिरावण ने उसे पातालपुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। यही हनुमान जी का पुत्र मकरध्वज कहलाया। जब राम रावण युद्ध में अहिरावण श्री राम और लक्ष्मण जी का हरण कर उन्हें पाताल पुरी ले गया, तो उनकी रक्षा करने के लिए हनुमान जी भी पाताल नगरी पहुंच गए। वहां एक वानर को देखा तो आश्चर्यचकित होकर उन्होंने मकरध्वज से उसका परिचय पूछा और मकरध्वज ने कहा कि मैं हनुमान का पुत्र मकरध्वज हूं और पातालपुरी का रक्षक हूं। तब हनुमानजी क्रोधित हो गए और बोले यह तुम क्या कह रहे हो? मैं तो बाल ब्रह्मचारी हूं! तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो?

यह जानने के बाद की वे स्वयं हनुमान जी हैं, मकरध्वज उनके चरणों में गिर गया और उन्हें अपनी सारी कथा सुनाई। तब हनुमान जी ने स्वीकार किया कि वह उनका ही पुत्र है, लेकिन वह अपने प्रभु श्री राम और लक्ष्मण को लेने आए हैं, इसलिए मकरध्वज उनका रास्ता छोड़ दे, लेकिन मकरध्वज भी अपने कर्तव्य से नहीं हटा। उसने हनुमान जी से युद्ध करना प्रारंभ कर दिया। जब हनुमान जी के बार बार समझाने पर भी वह नहीं उठा तो हनुमान जी ने उसे अपनी पूंछ में बाँधकर पताल में प्रवेश किया और अहिरावण का वध करने के उपरांत श्री राम और लक्ष्मण को लेकर वापस चल दिए तथा राम जी के कहने पर मकरध्वज को बंधन मुक्त कर दिया और उसका राज्याभिषेक कर उसे पाताल का राजा घोषित कर दिया।

सुंदरकांड और बजरंगबली

हनुमान जी को सुंदरकांड सबसे अधिक प्रिय है क्योंकि इसमें उन्हें उनकी खोई हुई शक्ति का परिचय दिया गया है। उन्हें उनकी शक्तियां दिलाई गई हैं और इस सुंदरकांड में ही हनुमान जी ने अपने प्रभु श्री राम और माता सीता को मिलाने के लिए मुख्य कार्य किए हैं। इसका वर्णन सुनकर हनुमान जी अत्यंत ही प्रसन्न हो जाते हैं और इसीलिए यह सुंदरकांड बहुत प्रभावशाली और शक्तिशाली माना जाता है। जब भी आपका कोई कार्य ना बन रहा हो या जीवन में आप अनेक कठिन समस्याओं से दुखी हों तो बजरंगबली की प्रतिमा या तस्वीर के समक्ष सुंदरकांड का पाठ करने से बजरंगबली की कृपा आप को सहज रूप से प्राप्त हो जाती है और वे आपकी रक्षा करते हैं।

कलयुग के जाग्रत देवता हैं बजरंबली 

हनुमान जी को कलयुग का जाग्रत देवता भी कहा जाता है और वर्तमान समय में हनुमान जी शीघ्र अति शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों को जीवन दान देते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। भगवान श्री राम का नाम जपने वाले की सदैव हनुमान जी रक्षा करते हैं। कलयुग के जाग्रत देवता होने के कारण हनुमान जी शीघ्र ही फल प्रदान करने वाले देवता हैं। उनकी पूजा पवित्रता के साथ और श्रद्धा के साथ करनी चाहिए क्योंकि उग्र होने के कारण वे अपवित्रता से नाराज़ भी हो सकते हैं, इसलिए पूरे मन से और सात्विकता तथा पवित्रता के साथ हनुमानजी की उपासना करनी चाहिए।

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