एक संकल्प
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समानता का अधिकार लागू हो पर्सनल लॉ कानून खत्म हो
आज के एक महत्वपूर्ण निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी आरोपित के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को केवल इसलिए रद नहीं किया जा सकता कि अपराध करने वाले कुछ अन्य लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्न की पीठ ने कहा कि मुकदमे के दौरान यदि यह पाया जाता है कि अन्य आरोपितों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर नहीं किया गया है, तो अदालत उन्हें दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए आरोपित के रूप में पेश कर सकती है।
पीठ ने हाल के एक आदेश में कहा कि किसी आरोपित के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही केवल इस आधार पर खारिज नहीं की जा सकती कि अपराध करने वाले कुछ अन्य लोगों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर नहीं किया गया है और उसका नाम जांच के बाद उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनने की जरूरत महसूस करते हुए आरोप-पत्र में दायर किया गया है।
क्या है मामला
शीर्ष अदालत कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुवर्णा सहकारी बैंक लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 408 (आपराधिक विश्वास भंग), 409 (लोकसेवक द्वारा विश्वास भंग, 420 (धोखाधड़ी) और 149 के तहत आरोपित बनाए गए व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद कर दी थी।
शिकायतकर्ता बैंक ने अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट, बेंगलुरु की अदालत में शिकायत दर्ज की और आइपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत चिकपेट पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की गई। जांच पूरी होने पर मामले में आरोपित नंबर एक के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया गया। आरोपी ने हाई कोर्ट का रुख किया, जिसने उसके खिलाफ कार्यवाही को इस आधार पर रद कर दिया कि पुलिस रिपोर्ट में मूल आरोपित नंबर दो और तीन की अनुपस्थिति में, केवल आरोपित नंबर एक के खिलाफ आरोप-पत्र दायर नहीं किया जा सकता।
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