मैंने सोचा दिल लग जाये
दुनिया मुझको भी उलझाये!
लेकिन ऐसा हो नहीं पाया
दुनिया में मन खो नहीं पाया!
पल-पल अपने ढ़ंग बदलना
सीख न पाये रंग बदलना!
ठगे-ठगे से खड़े रह गये
आँखों से हर पीर कह गये!
नयन-नीर बरसा एकाकी
किसने इसकी क़ीमत आंकी!
सबल हुए पर भाव खो गये
मन के सारे चाव खो गये!
संबंधों के संवर्धन में
झूठे लोग मिले जीवन में!
मुंह के मीठे मन के मैले
ये दोपाये जीव विषैले!
केवल मेरी बात नहीं ये
भले मनुज के मन का डर है!
दुर्जन हाँक रहे दुनिया को
सज्जन का जीना दूभर है!
बदल रही है चाल समय की
यही घड़ी है सचमुच क्षय की!!!!