Thursday, September 19, 2024
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खेती में नवाचार, अब केसर की खेती बंद कमरे में और संवेदनशील पोधो की खेती बिना मिट्टी के , जानिए ये नई तकनीक

खेती करना अब घाटे का सौदा नहीं रहा। खेती में भी नई तकनीक का प्रयोग कर आप भी सुरक्षित और मुनाफेदार व्यापार कर सकते है।
जानिए केसर और हाइड्रोपोनिक फार्मिंग से अन्य बीजों की खेती

केसर उगेगा अब बंद कमरे में
कश्मीर केसर की खेती के लिए मशहूर है. केसर की खेती से यहां के किसान प्रतिवर्ष लाखों रुपए की कमाई करते हैं. पर कभी कभी मौसम की मार के कारण के किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए यहां के किसान अब केसर की इनडोर खेती करने की तकनीक सीख रहे हैं. इससे अच्छी पैदावार हो रही है. सबसे बड़ा फायदा यहा हो रहा है कि इनडोर फार्मिंग में उपजाए गए केसर की गुणवत्ता सबसे बेहतर होती है और इसके दाम भी अच्छे मिलते हैं.

इनडोर केसर की खेती करने के फायदे
इनडोर केसर की खेती घर के बंद कमरे में की जाती है, इसलिए किसानों को हर दिन खेत में देखने के लिए नहीं जाना पड़ता है. इसलिए हर रोज फार्म में जाने की मेहनत बच जाती है.

इनडोर खेती का दूसरा फायदा यह होता है कि यह बंद कमरे में की जाती है इसलिए इसमें जानवरों का खतरा नहीं रहता है, क्योंकि केसर के खेतो में पार्कोक्विन नामक जानवर आकर केसर को खोदकर उसके बीज को खा जाता है.

केसर की इनडोर फार्मिंग में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. बस केसर का कार्म निकाल कर उसे बांस या लोहे के बनाए गए लेयर में रखना पड़ता है.

इनडोर फार्मिंग में छोटे से कमरे में भी बेहतर पैदावार हासिल होती है. इससे किसानों को ज्यादा मुनाफा मिलता है.

इनडोर फार्मिंग बंद कमरे के अंदर की जाती है इसलिए इसमें मौसम में हो रहे बदलाव का ज्यादा असर नहीं होता है.

इनडोर फार्मिंग के जरिए ऊपजाए गए केसर की गुणवत्ता खुले वातावरण में उगाए गए केसर के बेहतर होती है, किसानों को इसके अच्छे दाम मिलते हैं.

कैसे होती है इनडोर फार्मिंग
केसर की इनडोर फार्मिंग करने वाले कश्मीर के किसान मजीद वानी बताते है कि केसर की इनडोर फार्मिंग के लिए एक ऐसे बंद कमरे की जरूरत होती है जो पूरी तरह अंधेरा रहता है. इनडोर फार्मिंग में इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि जिस कमरे में केसर की इनडोर फार्मिंग की जा रही है वहां पर रोशनी बिल्कुल नहीं पहुंच पाए. इनडोर फार्मिंग के लिए केसर के कार्म को तीन महीने तक बंद अंधेरे कमरे में रखा जाता है. तीन महीने बाद केसर हार्वेस्टिंग के लिए तैयार हो जाती है. इसके लिए 20 डिग्री तामपान की आवश्यकता होती है. कमरे में रोशनी आने पर केसर के खराब हो जाता है.

प्रयोग के तौर पर की थी शुरुआत
मजीद वानी बताते हैं कि सबसे पहले उन्होंने प्रयोग के तौर केसर के इनडोर फार्मिंग की शुरुआत की थी. फिर जब इसमें सफलता मिली तो दूसरे किसानों को भी इसके लिए जागरूक किया और प्रोत्साहित किया. अब यहां के कई किसान इनडोर फार्मिंग कर रहे हैं. इससे उन किसानों को भी फायदा हो रहा है जिनके पास खेती के लिए कम जमीन है. अब छोटे कमरे में भी केसर की खेती करके किसान अच्छी कमाई कर रहे हैं. यह तकनीक यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है.

संवेदनशील बीजों को बिना मिट्टी उगाए
मिट्टी की लगातार गिरती गुणवत्ता और उससे जनित रोगों को देखते हुए पिछले कुछ सालों में भारत में खेती की नई-नई तकनीकें सामने आई हैं. आजकल छत और बालकनी या किसी भी सीमित जगह का इस्तेमाल कर फल और सब्जियों को उगाने का चलन बढ़ा है

ऐसे में हाइड्रोपोनिक फार्मिंग इसके लिए उपयुक्त तकनीक है. इस तकनीक की खासियत ये है कि इसमें पौधे को लगाने से लेकर विकास तक के लिए मिट्टी की कहीं भी जरूरत नहीं है और लागत अन्य तकनीकों के मुकाबले बेहद कम है.

भोपाल की रहने वाली साक्षी भारद्वाज माइक्रो बायोलॉजी में पीएचडी कर रही हैं. वह खुद हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती करने के साथ-साथ इसपर रिसर्च भी कर रही हैं. वह कहती हैं कि खेतों में कई तरह के फर्टिलाइजर का उपयोग किया जाता है. ऐसे में वहां उगने वाली फसलों और सब्जियों का सेवन हमारे लिए बेहद नुकसानदायक होता है. ऐसी स्थिति में आप हाइड्रोपोनिक फार्मिंग का उपयोग कर घर पर ही किसी भी जगह सब्जियां या फल लगा सकते हैं. ये सब्जियां पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त होती है, साथ ही बेहद पौैष्टिक भी होती हैं.

हाइड्रोपोनिक तरीके से फार्मिंग के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं पड़ती है. केवल अपनी जरूरत के हिसाब से इसका सेटअप तैयार करना पड़ता है. एक या दो प्लांटर सिस्टम से भी इसकी शुरुआत कर सकते हैं या फिर बड़े स्तर पर 10 से 15 प्लांटर सिस्टम भी लगा सकते हैं. इसके तहत तहत आप गोभी, पालक, स्ट्राबेरी, शिमला मिर्च, चेरी टमाटर, तुलसी, लेटस सहित कई अन्य सब्जियाें और फलों का उत्पादन कर सकते हैं.

सबसे पहले एक कंटेनर या एक्वारियम लेना पड़ेगा. उसमें एक लेवल तक पानी भर दें. कंटेनर में मोटर लगा दें, जिससे पानी का फ्लो बना रहे. फिर कंटेनर मे इस तरह पाइप फिट करें, जिससे उसके निचले सतह पर पानी का फ्लो बना रहे. पाइप में 2-3 से तीन सेंटिमीटर के गमले को फिट करने के लिए होल करवा लें. फिर उन होल में छोटे-छोटे छेद वाले गमले को फिट कर दें.

गमले में पानी के बीच बीज इधर उधर ना जाए, इसके लिए इसे चारकोल से चारो ओर से कवर दें . जिसके बाद गमले में नारियल की जटों का पाउडर डाल दें, फिर उसके ऊपर बीज छोड़ दें. दरअसल नारियल की जटों का पाउडर पानी को काफी अच्छी तरह से ऑब्जर्व करता है, जो पौधों के विकास के लिए काफी फायदेमंद होता है. वहीं इस दौरान प्लांटर में मछली का पालन भी कर सकते हैं. दरअसल, मछलियों के अपशिष्ट पदार्थ को पौधों के विकास में काफी सहायक माना जाता है.

साक्षी भारद्वाज कहती हैं कि अगर आप इससे भी कम मेहनत और लागत में सब्जियों और फलों उगाना चाहते हैं तो एक फाइबर का कंटेनर भी ले लें. उसमें एक लेवल तक ही पानी भरें. उसके ऊपर ट्रे रख दें, जिसमें छोटे-छोटे छेद हो. फिर जिस सब्जी या फल को लगाना चाहते हैं, उसके बीज को ट्रे पर डाल दें और छोड़ दें. पानी से पोषण पाकर कुछ ही दिन में पौधा निकल आएगा. इसके निकलने के बाद पौधे की जड़े ट्रे के छेद के रास्ते पानी तक जब पहुंचने लगेंगी तो तेजी से उसका विकास होने लगेगा.

हाइड्रोपोनिक फार्मिंग एक विदेशी तकनीक है. विदेशों में इसे उन पौधों को उगाने में उपयोग किया जाता है, जो काफी संवेदनशील होते हैं और मिट्टी जनित रोगों के शिकार हो जाते हैं. अब धीरे-धीरे यह तकनीक भारत में बेहद लोकप्रिय हो रहा है. इस सेटअप करने से पहले जरूर ध्यान रखें कि कंटेनर तक धूप की पर्याप्त पहुंच हो, नहीं तो पौधे का विकास प्रभावित होगा.

साक्षी के मुताबिक हाइड्रोपोनिक फार्मिंग का उपयोग व्यवसायिक तौर पर भी किया जा सकता है. इसके लिए आपको बड़े सेटअप की जरूरत पड़ेगी. बड़े सेटअप में लागत जितनी आएगी मुनाफा भी उतना ही होगा. दरअसल कई विदेशी पौधों को भारत का जलवायू सूट नहीं करता है, उन्हें इस तकनीक के माध्यम से उगाया जा सकता है. ये सब्जियां या फल बाहर काफी महंगे बिकते है, जिससे आप बेहतर मुनाफा भी कमा सकते हैं.

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