जागरूक रहिए नुकसान से बचिए
एक महत्वपूर्ण फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म के मामले में पीड़िता की अकेली गवाही ही सजा देने का पर्याप्त है। पीड़िता के बयान की अन्य सुसंगत साक्ष्यों से समानता होना भी जरूरी नहीं है जबतक कि ऐसा करना बेहद जरूरी न हो।
कोर्ट ने कहा कि यह बात मायने नहीं रखती है कि पीड़िता के बयान में मामूली विरोधाभास है। ऐसा कोई कानून नहीं है कि पीड़िता के बयान में सुसंगत साक्ष्यों के अभाव में विश्वास न किया जाए। हाईकोर्ट ने 34 साल पुराने दुष्कर्म के मामले में सजायाफ्ता अभियुक्त की अपील खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया।
शाहजहांपुर के मुस्तकीम की अपील पर न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार चतुर्थ ने सुनवाई की।
कोर्ट ने कहा कि पीड़िता ने अभियोजन की कहानी का पूरी तरह से समर्थन किया है। बचाव पक्ष द्वारा की गई प्रतिपरीक्षा में ऐसा कोई बिंदु उजागर नहीं हुआ जिससे पीड़िता के बयान पर अविश्वास किया जा सके। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा प्रतिपादित दर्जनों न्यायिक सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है कि सुसंगत साक्ष्य के अभाव में पीड़िता पर विश्वास न किया जाए।
कोर्ट ने बचाव पक्ष की उस दलील को भी खारिज कर दिया कि पीड़िता के अलावा अन्य कोई चश्मदीद गवाह घटना का नहीं है। यह दलील भी अस्वीकार कर दी कि पीड़िता के शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं है इसलिए मामला आपसी सहमति का भी हो सकता है।
वन्दे मातरम 🇮🇳