Sunday, May 19, 2024
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मासरताल टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड

नमस्कार दोस्तों,

सुरम्य मासर ताल उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह समुद्र तल से 3,000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह झील मासार टॉप के नीचे स्थित है और दूधागंगा बामक (डब्ल्यू) के बाएं किनारे पर, मे मार्ग दर्रा

भीलंगना नदी का उद्गम स्थल मसर ताल का महत्वपूर्ण स्रोत है। झील घने जंगल से घिरी हुई है, घास के मैदान और बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियाँ। इस झील के पास स्थित ज्ञात शहर घ्ट्टू और घनसाली हैं। इस झील की यात्रा का सबसे अच्छा समय जून से सितंबर के बीच है।
मसर ताल गढ़वाल क्षेत्र की सबसे अलग-थलग झीलों में से एक है। मनभावन मसर ताल के आसपास की मनोरम दृश्यावली इसे लोकप्रिय ट्रेक बनाती है।  झील के आसपास के क्षेत्र में अल्पाइन हरी घास के मैदान हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘बुग्याल’ भी कहा जाता है। इन घास के मैदानों को विभिन्न वनस्पतियों से ढंका गया है, जिस पर नंगे पैर चलने से ऐसा लगता है जैसे बादलों पर बह रही हो।

मासरताल टिहरी गढ़वाल  का  इतिहास 

केदार हिमालय में नाग जाति के रहने के पुष्ट प्रमाण मिलते है। गढ़वाल में नागराजा का मुख्य स्थान सेम मुखेम माना जाता है, इसी संदर्व में नागवंश में महासरनाग का विशिष्ट स्थान है। जो कि बालगंगा क्षेत्र में महत्वपूर्ण देवता की श्रेणी में गिना जाता है। महासरनाग का निवास स्थान महासरताल है। महासरताल बूढ़ाकेदार से करीब 10 कि। मी। उत्तर की ऒर लगभग दस हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित है। प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर, भिन्न भिन्न प्रजातियों एवं दुर्लभ वृक्छॊं की ऒट में स्थित महासरताल से जुड़ी संछिप्त मगर ऐतिहासिक गाथा के बारे में जानने के लियॆ करीब तेरह सौ साल पुराने इतिहास को खंगलाना पड़ॆगा। करीब तेरह सौ वर्ष पूर्व मैकोटकेमर में धुमराणा शाह नाम का राजा राज्य करता था इनका एक ही पुत्र हुआ जिनका नाम था उमराणाशाह जिसकी कोई संतान न थी। उमराणाशाह ने पुत्र प्राप्ति के लिए शेषनाग की तपस्या की। उमराणाशाह तथा उनकी पत्नी फुलमाळा की तपस्या से शेषनाग प्रसन्न हुए और मनुष्य रूप में प्रकट होकर उन्हें कहा कि मैं तुम्हारे घर में नाग रूप में जन्म लूँगा। फलत: शेषनाग ने फुलमाळा के गर्भ से दो नागों के रूप में जन्म लिया जॊ कि कभी मानव रूप में तो कभी नाग रूप में परिवर्तित होते रहते थे। नाग का नाम महासर (म्हार) तथा नागिन का नाम माहेश्वरी (म्हारीण) रखा गया। उमराणाशाह की दो पत्नियां थी। दूसरी पत्नी की कोई संतान न थी। सौतेली मां की कूटनीति का शिकार होने के कारण उन नाग। नागिन (भाई बहिन) को घर से निकाल दिया गया। फलस्वरूप दोनो भाई बहिनो ने बूढ़ाकेदार क्षेत्र में बालगंगा के तट पर विशन नामक स्थान चुना। विशन में आज भी इनका मन्दिर विध्यमान है। इन नागों ने मनुष्य रूप में अवतरित होकर भट्ट वंश के पुरखॊं से वचनबध्द हुए कि तुम हमारी परम्परा के अनुसार मन्दिर में पूजा करॊगे। आज भी इस परम्परा का निर्वहन विधिवत किया जा रहा है, यानि भट्ट जाति के लोग नाग की पूजा अनवरत् रूप में करते आ रहे है। उल्लेखनीय है कि इन भट्ट पुजारियॊ के पास महाराजा सुदर्शनशाह द्वारा नागपूजा विषयक दिया गया ताम्रपत्र सुरक्छित है। बालगंगा क्षेत्र के राणा जाति के लोगो को ‘नागवंशी राणा’ कहा जाता है (दूसरा वंश सूर्यवंशी कहा जाता है)।

पुराने लोगों की मान्यताओं के अनुसार

विशन गाँव के अतिरिक्त नाग वंशी दोनो भाई बहिनो ने एक और स्थान चुना जो विशन गाँव के काफी ऊपर है जिसे ‘महसरताल’ कहते है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसे  नाग विष्णु स्वरूप जल का देवता माना जाता है और नाग देवता का निवास जल में ही होता है अत: इस स्थान पर दो बड़ी बड़ी झीलॆं है जिन्हे ‘म्हार’और ‘म्हारीणी’ का ताल कहा जाता है। कहते है नागवंशी दोनो भाई बहिन इन्ही दो तालॊं में निवास करते है। महासरताल में म्हार’ देवता का एक पौराणिक मन्दिर है जिसके गर्भगृह में पत्थर का बना नाग देवता है। गंगा दशहरा के अवसर पर महासरनाग की मूर्ति (नागदेवता) मूल मन्दिर विशन से डोली में रखकर महासरताल स्नान के लिए ले जायी जाती है। इस पुण्य पर्व पर माहासरनाग को मंत्रॊच्चार के साथ वैदिक रीति से स्नान कराकर यग्य, पूजा। अर्चना आदि करायी जाती है। इस अवसर पर दूर- दूर से श्रध्दालु आकर इस ताल में स्नान कर पुण्य कमाते है। गंगा दशहरा को लगने वाला यह मेला प्राचीनकाल से चला आ रहा है। इस ताल की लंबाई करीब 70 मीटर तथा चौड़ाई 20 मीटर के लगभग है। जबकि ‘म्हारीणी’ ताल वृताकार है। दोनो तालों की गहराई का पता नहीं चल पाया।

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